राजस्थान में पशुपालन : अवसर एवं चुनौतीयां
कृषकसमाज शुरू से ही पशु सेवा के प्रति समर्पित रहा लेकिन पशुपालन व्यवसाय आज भी सफल आधार नहीं बन पाया है कारण स्पष्ट है, उत्पादन क्षमता का अभाव, क्षेत्रों में विशाल पशुधन संख्या तो उपलब्ध है लेकिन पशुओं की उत्पादन क्षमता बहुत ही कम है, अर्थात उपलब्धता तो सुनिश्चित है, लेकिन उत्पादकता सुनिश्चित नहीं है। आवश्यकता है उपलब्ध उच्च कोटि के प्रमाणित देशी नस्लों का वैज्ञानिक संरक्षण एवं संवर्द्धन तथा अवर्गीकृत निम्न श्रेणी के पशुओं में प्रजनन द्वारा उत्पादकता में वृद्धि की। प्रदेश में पशुधन विकास की अपार सम्भावनाएं है और इन सम्भावनाओं के साथ जुडी हुई ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की विपुल सम्भावनाएं।
देश की बढ़ती हुई जनसंख्या तथा निरंतर दूध की बढ़ती हुई मांग को संतुष्ट करने हेतु दुग्ध उत्पादन वृद्धि कार्यक्रमों का अत्यधिक महत्व है। भारत सरकार तथा राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड द्वारा संचालित दुग्ध उत्पादन वृद्धि कार्यक्रम के फलस्वरूप दुग्ध उत्पादन मात्रा की दृष्टि से आज हम अगणीय स्थान पर हैं, लेकिन फिर भी हमें दुग्ध उत्पादन बढ़ाने की दिशा में काफी प्रयास करना है। पिछले दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ ऐसे आमूल परिवर्तन हुये है जिनकी कल्पना भी नही की जा सकती थी। 1970 के दशक में भारतीय कृषि व्यवस्था में हरित क्रान्ति योजना के सफलता से कियात्वयन के फलस्वरूप आज हमारा देश खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हो चुका है । लेकिन भारत में विश्व के अन्य देशों की तुलना में सर्वाधिक पशु संख्या होने के बावजूद भी हम दुग्ध उत्पादन में अभी बहुत पीछे है।
देश की बढ़ती हुई जनसंख्या
तथा समानुपाती बढ़ती हुई दूध की मांग की पूर्ति की दृष्टि से अभी दुग्ध उत्पादन वृद्धि
के क्षेत्र में बहुत प्रयास करने की आवश्यकता है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में पशुपालन
एवं डेयरी विकास को वैज्ञानिक स्वरूप अवश्य मिला है और देश में पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालयों की स्थापना के साथ-साथ उनमें डेयरी पशुपालन
एवं विज्ञान के विषयों में शिक्षा व शोध की समुचित व्यवस्था भी सुनिश्चित हुयी लेकिन
हमारे प्रदेश की गायों व भैंसों के दुग्ध उत्पादन की आनुवंशिक क्षमता तथा उनके पर्याप्त
पोषण की दिशा में अपेक्षित सुधार नहीं हो सका है।
राजस्थान की अर्थव्यवस्था कृषि उत्पादन द्वारा संचालित होती है और कृषि का एक महत्वपूर्ण अंग है पशुपालन । प्राचीन काल से ही किसान का धन रहा है जो उसकी सम्पन्नता तथा सामाजिक व आस्थाओं को पूरा करने में आदिकाल से योगदान देते आ रहे हैं समय के बदलाव के साथ सथ जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण की प्रक्रिया में लोगों के जीवनयापन के तरीकों में परिवर्तन आया और दूध की मांग में वृद्धि हुई, पशुपालन व्यवसाय स्वरोजगार के रूप में पनपने लगा है ।