भारत का भौतिक स्वरूप या इंडियन फिजियोग्राफी- भाग 1

 



 

 हमारे देश में हर प्रकृति की भू-आकृति पायी जाती है  जैसे-

पर्वत –मैदान- मरुस्थल- पठार- द्वीपसमूह

मृदा का रंग व शैल का प्रकार  में भिन्नता पायी जाती है|

 भारत एक विशाल भूभाग है जिसका निर्माण विभिन्न भूगर्भीय कालों के दौरान हुए  परिवर्तन जिसने इसके उच्चवचो  को प्रभावित किया और  भूगर्भीय निर्माणों के अतिरिक्त अन्य प्रक्रियाएं जैसे अपरदन व  निक्षेपण के द्वारा वर्तमान उच्चावच का निर्माण तथा संशोधन हुआ है|

 

 कुछ प्रमाणों पर आधारित सिद्धांतों की सहायता से भूगर्भ शास्त्रियों ने इन भौतिक आकृतियों के निर्माण की व्याख्या करने का प्रयास किया है इसी तरह का एक सिद्धांत प्लेट टेक्टोनिक्स का सिद्धांत है इस सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की ऊपरी पर्पटी  सात बड़ी व कुछ छोटी प्लेट से बनी है|

 

प्लेटो की गति के कारण प्लेटों के अंदर एवं ऊपर की ओर स्थित महाद्वीपीय शैलो में दबाव उत्पन्न होता है इसके परिणाम स्वरूप वलन भ्रंशन व ज्वालामुखी क्रियाएं होती हैं|

 

सामान्यतः प्लेट तीन प्रकार की गति प्रदर्शित करती हैं  प्लेट टकराकर टूट सकती है या एक प्लेट फिसल कर दूसरी के नीचे जा सकती है|

 

 अभिसारी परिसीमा   →←

 अपसारी परिसीमा    ← →

रूपांतर परिसीमा       ↑↓

 

सात प्लेट निम्न प्रकार है 

1.     यूरेशियन प्लेट 

2.     indo-australian प्लेट 

3.     अफ्रीकी प्लेट 

4.     दक्षिण अमेरिकी प्लेट 

5.     उत्तर अमेरिकी प्लेट 

6.     प्रशांत महासागरीय प्लेट 

7.     अंटार्कटिक प्लेट

 

प्लेट की गति से क्या प्रभाव पड़ता है?

 

·       इन प्लेटो में लाखों वर्षों से हो रही गति के कारण महाद्वीपों की स्थिति तथा आकार में परिवर्तन आया है|

·       भारत की वर्तमान स्थलाकृति का विकास भी इस प्रकार की   गति से प्रभावित हुआ है|

·       विश्व के अधिकतर ज्वालामुखी एवं भूकंप  संभावित क्षेत्र  प्लेट के किनारों पर स्थित है  लेकिन कुछ क्षेत्र प्लेट के अंदर भी पाए जाते हैं|

 

सबसे प्राचीन भूभाग प्रायद्वीपीय भाग गोंडवाना भूमि का हिस्सा था

गोंडवाना भूमि प्राचीन विशाल महाद्वीप पंजिया  का दक्षिणतम भाग है

पंजिया महाद्वीप का उत्तरी भाग अंगारलैंड है

गोंडवाना भूभाग के विशाल क्षेत्र में भारत ऑस्ट्रेलिया दक्षिण अफ्रीका दक्षिण अमेरिका अंटार्कटिका  क्षेत्र आते हैं

 

हिमालय की उत्पत्ति किस प्रकार हुई?

 

 संवहनी धाराओं ने भूपर्पटी को अनेक टुकड़ों में विभाजित कर दिया  इस प्रकार भारत-ऑस्ट्रेलिया की प्लेट गोंडवाना भूमि से अलग होने के बाद उत्तर दिशा की ओर प्रवाहित होने लगी परिणाम स्वरुप अपने से अधिक विशाल प्लेट यूरेशियन प्लेट  से टकराई इस टकराव के कारण दोनों प्लेटों के बीच स्थित  टेथिस भूअभिनति के अवसादी चट्टान वलित होकर हिमालय तथा पश्चिमी एशिया की पर्वतीय श्रृंखला के रूप में विकसित हो गए 

 

टेथिस  के ऊपर उठने तथा प्रायद्वीपीय पठार के उत्तरी किनारों के नीचे धंसने के कारण बहुत बड़ी द्रोणी का निर्माण हुआ समय के साथ-साथ यह बेसिन उत्तर के पर्वतों तथा दक्षिण के प्रायद्वीपीय पठार से बहने वाली नदियों के अवसादी निक्षेप द्वारा धीरे-धीरे भर गया और जलोढ़ निक्षेप से निर्मित विस्तृत समतल भूभाग उत्तरी मैदान के रूप में विकसित हो गया|

 

 प्रायद्वीपीय पठार  स्थिर भाग माना जाता था परंतु हाल के भूकंप से गलत साबित हुआ है|

हिमालय एवं उत्तरी मैदान हाल में बनी स्थलआकृतियां हैं जिनमें ऊंचे शिखर,गहरी घाटियां,तेज बहने वाली नदियां है

 जबकि प्रायद्वीपीय पठार  आग्नेय व रूपांतरित शैल वाली ऊंची पहाड़ियों व चौड़ी घाटियों से बना है 

असंगठित चट्टान वास्तव में मिट्टी हैवर्तमान अनुमान के अनुसार पृथ्वी की आयु 4.6  अरब  वर्ष पूर्व है इतने लंबे समय में अंतरजात बहिर्जात बलों से अनेक परिवर्तन हुए हैं इन बलों की पृथ्वी के धरातलीय व अधस्थलीयआकृतियों की रूपरेखा निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका रही है|

 

 इंडियन प्लेट भूमध्य रेखा के दक्षिण में स्थित थी  जो आकार में काफी विशाल  थी और ऑस्ट्रेलियन प्लेट इसी का हिस्सा थी  लेकिन करोड़ों वर्षों के दौरान यह प्लेट काफी समय टूट गई ऑस्ट्रेलियन प्लेट दक्षिण पूर्व में व  इंडियन प्लेट उत्तर दिशा में खिसकने लगी|

 

·       सवाल यह है क्या आप इंडियन प्लेट के खिसकने की अवस्थाओं को रेखांकित कर सकते हैं?

 

·       इंडियन प्लेट का खिसकना अभी भी जारी है इसका भौतिक पर्यावरण पर महत्वपूर्ण प्रभाव है क्या आप इंडियन प्लेट के उत्तर में खिसकने के परिणामों का अनुमान लगा सकते हैं?

 

भूवैज्ञानिक संरचना व शैल समूह की भिन्नता के आधार पर तीन भूवैज्ञानिक खंड जो भौतिक लक्षणों पर आधारित हैं निम्न प्रकार है

1.     प्रायद्वीपीय खंड 

2.     हिमालय व अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वत मालाएं 

3.     सिंधु -गंगा- ब्रह्मपुत्र मैदान

 

 

 

१.प्रायद्वीपीय खंड

 

·       उत्तरी सीमा कटी फटी है जो कच्छ  से आरंभ होकर अरावली पहाड़ियों के पश्चिम से गुजरती हुई दिल्ली तक फिर गंगा यमुना के समानांतर राजमहल की पहाड़ियों व गंगा डेल्टा तक जाती है|

·       इसके अतिरिक्त उत्तर पूर्वी भाग में कार्बी आंगलोंग (असम)  व मेघालय का पठार तथा पश्चिम में राजस्थान भी इस खंड के विस्तार हैं

·       पश्चिम बंगाल में मालदा भ्रंश  है जो उत्तर पूर्वी भाग में स्थित मेघालय के पठार व कार्बी आंगलोंग पठार को छोटा नागपुर पठार से अलग करता है|

·       राजस्थान में यह प्रायद्वीपीय खंड मरुस्थल व मरुस्थल सदृश्य स्थलाकृतियों से ढका हुआ है|

·       प्रायद्वीपीय पठार मुख्यतः प्राचीन नीस व ग्रेनाइट चट्टानों से बना है|

·       कैंब्रियन कल्प से यह भूखंड एक कठोर खंड के रूप में खड़ा है  अपवाद स्वरूप पश्चिमी तट समुद्र में डूबा होने के कारण और कुछ हिस्से विवर्तनिकी क्रियाओं से परिवर्तित होने के बाद भी इस भूखंड के वास्तविक आधारतल पर प्रभाव नहीं पड़ा है|

·       indo-australian प्लेट का हिस्सा होने के कारण यह ऊर्ध्वाधर हलचलो  व खंड  भ्रंश से प्रभावित है

·       नर्मदा तापी महानदी  की रिफ्ट घाटियां और सतपुड़ा ब्लॉक पर्वत इसके उदाहरण है|

·       प्रायद्वीप में मुख्यतः अवशिष्ट पहाड़ियां शामिल है जैसे अरावली ,नल्ला मल्ला ,जावदी ,वेलीकोंडा ,पालकोंडा श्रेणी और महेंद्रगिरी पहाड़ियां |

·       यहां की नदी घटिया उथली हुई  है और उनकी प्रवणता कम है

 

Q.क्या हम हिमालय से निकलने वाली तथा प्रायद्वीपीय नदियों की प्रवणता ज्ञात करके उनकी तुलना कर सकते हैं?

 

पूर्व की ओर बहने वाली अधिकांश नदियां बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले डेल्टा निर्माण करती हैं महानदी गोदावरी कृष्णा द्वारा निर्मित डेल्टा इसके उदाहरण है|

 

हिमालय और अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वत मालाएं

 

१.कठोर व स्थिर प्रायद्वीपीय खंड के विपरीत हिमालय और अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वत मालाओं की भूवैज्ञानिक संरचना तरुण दुर्बल लचीली है और यह पर्वतमाला वर्तमान समय में बहिरजनिक व  अंतर जनित बलों की अंतः क्रियाओं से प्रभावित है इसके परिणाम स्वरूप इनमें वलन भ्रंश और थ्रस्ट बनते है|

 २.तेज बहाव वाली नदियों से अपरदित  यह पर्वत अभी भी युवावस्था में है  गार्ज , V आकार की घाटियां ,शिप्रिकाए, जलप्रपात इत्यादि इसका प्रमाण है|

 

 

सिंधु - गंगा - ब्रह्मपुत्र मैदान-

 

सिंधु गंगा ब्रह्मपुत्र मैदान मूल रूप से भू-अभिनति  गर्त है जिसका निर्माण मुख्य रूप से हिमालय पर्वतमाला निर्माण-प्रक्रिया के तीसरे चरण में लगभग 6.4 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था तब से हिमालय व प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली नदियां अपने साथ लाए हुए अवसाद से इस मैदान को पाट रही है जलोढ़ की औसत गहराई 1000 से 2000 मीटर है|

 

भू-वैज्ञानिक संरचना में अंतर के कारण धरातल व  भू-आकृति पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है|

 

 दक्षिण भारत स्थिर पर कटा-फटा पठार है जहां पर चट्टान-खंड और कगारो की भरमार है|

 

 

 

 

 

 

मोटे तौर पर निम्न प्रकार के भू-आकृति खंड भारत में है-

1.     उत्तर व उत्तर-पूर्वी पर्वतमाला

2.      उत्तरी भारत का मैदान 

3.     प्रायद्वीपीय पठार

4.      भारतीय मरुस्थल 

5.     तटीय मैदान 

6.     द्वीप समूह

 

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