वर्तमान समय में तनाव या डिप्रेशन मुख्य समस्या का रूप ले रहा है| छोटी मोटी चिंताएं, परिवार के कुछ मतभेद, लंबी बीमारी, इत्यादि समस्याएं मानवीय इतिहास में शुरू से रही है इसलिए अगर हम तनाव या डिप्रेशन की बात करें तो यह नया नहीं है लेकिन इसकी गंभीरता को समझना आवश्यक है क्योंकि तनाव के अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव हम समाज में देख रहे हैं बहुत से उदाहरण आसपास देख सकते हैं जैसे सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या प्रकरण और अन्य बहुचर्चित आत्महत्या इनका जिक्र आवश्यक है क्योंकि इनका गरीबी,पारिवारिक तनाव,आर्थिक समस्या या बीमारी से संबंधित कोई समस्या इत्यादि से इनका कोई लेना देना नहीं था,तो ऐसी क्या परिस्थितियां रही?कि इन्हें जीवन से हार माननी पड़ी
बहु चर्चित हस्तियों के अलावा सामान्य आदमी भी वर्तमान युग में तनाव से जूझ रहा है पुरुषों में तनाव आज एक गंभीर चिंता का विषय है
तनाव से ग्रसित व्यक्ति को हम सलाह देते हैं कैसे उबर पाए लेकिन क्या कभी हमने उस तनाव के कारण को जानने का प्रयास किया है उनके मन में झांकने का प्रयास किया है क्योंकि तनाव बढ़ाने में क्या समाज का योगदान नहीं है|
इसलिए आज ऐसी मुख्य बातों पर चर्चा करेंगे जो यह बताती है कि पुरुषों में तनाव उनके आसपास के लोगों द्वारा प्रतिदिन ऐसी बातें या ऐसे वाक्य कहे जाने के कारण होता है
प्रथम वाक्य- पारिवारिक जिम्मेदारी कौन निभाएगा?
- स्थाई नौकरी ढूंढने और परिवार को सहायता देने का दबाव एक अल्प मध्यमवर्गीय या औसत भारतीय परिवार के लड़के पर हमेशा से रहा है और यह अपेक्षाएं उस लड़के के जन्म लेते ही उसके साथ आती है|
- परिवार या आसपास के लोगों द्वारा भी यह एहसास उसे हमेशा कराया जाता है कि यह अपेक्षा है और अगर वह इन अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता है तो शायद उसके जीवन का कोई मूल्य नहीं है|
- हालांकि यह सब हमेशा सीधे तौर पर नहीं कहा जाता है फिर भी कभी-कभी यह बहुत दर्दनाक हो सकता है क्योंकि 25 साल का होने तक यह अपेक्षा कि उसे एक संतोषजनक आय अर्जित करनी ही चाहिए इसका स्तर वास्तव में काफी चिंताजनक हो जाता है|
- समाज में इस बात का आत्म अवलोकन आवश्यक है|समाज को समझना होगा कि जिम्मेदारी और दबाव दो अलग-अलग बातें हैं इसे हम ऐसे समझ सकते हैं की जिम्मेदारी अपने आप से आती हैं और दबाव बाहर से
2.शारीरिक लक्षण या बनावट के बारे में कहना
- एक वैज्ञानिक तथ्य है कि प्रत्येक पुरुष के जींस अलग-अलग होते हैं हो सकता है कुछ पुरुषों में कुछ विशेष लक्षण जैसे दाढ़ी या स्तन सामान्य ना हो जैसे दाढ़ी का बिल्कुल नहीं आना और स्तन का अधिक विकसित हो जाना|
- आजकल यह सामान्य बात है कि इन विशेष लक्षणों की तरफ बार-बार इंगित करना जो कि अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव डालता है जब कि कोई भी पुरुष इन लक्षणों में कोई बदलाव नहीं कर सकता है|
3.मर्द को दर्द नहीं होता
- हमारे समाज की बहुत बड़ी विडंबना है एक पुरुष जो अपने दुख और कठिनाइयों को आंसुओं के द्वारा अभिव्यक्त करता है उसे कमजोर समझा जाता है हालांकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में बहुत सारे ऐसे कैंपेन चलाए गए हैं कि पुरुष भी अपने दुख को व्यक्त कर सकता है लेकिन फिर भी यह धारणा प्रचलित है|
- भारतीय समाज में एक सामान्य वाक्य है लड़की है क्या?
- भारतीय समाज में प्रत्येक पुरुष को इस वाक्य का सामना अपने जीवन में एक बार तो करना ही पढ़ा होगा|
- पारिवारिक सदस्यों द्वारा ऐसा कहा जाना पुरुष के भावनात्मक अभिव्यक्ति को गहराई से और चिंताजनक स्तर पर प्रभावित करता है|
4. लड़का बहुत डरपोक है-
- क्या पुरुष किसी भी काम को करने में सक्षम है चाहे तार्किक स्तर पर किया जाना संभव न हो|
- कोई लड़का असंभावित काम करने का प्रयास करें और फेल हो जाए तो उसे साफ तौर पर कहा जाएगा फट्टू है क्या?
- जैसे कि ब्रह्मांड में सिर्फ वही एक व्यक्ति है जो उस काम को करने में सक्षम नहीं है जबकि साधारणतया उस काम को ब्रह्मांड में किसी ने भी नहीं किया है|
5.बहुत शर्मीला है|
- पुरुष पर भावनात्मक दबाव रहता है कि वह अपनी असुरक्षा की भावना को अभिव्यक्त ना करें उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह उन भावनाओं की अभिव्यक्ति को अनुचित स्तर तक दबाकर रखें सिर्फ इसलिए कि वह पुरुष है
6. तुम्हारी गर्लफ्रेंड नहीं है क्या?
- स्कूल और कॉलेज के लड़कों के लिए यह इतना ज्यादा गंभीर सवाल हो गया है कि उन्हें झूठी कहानियों का सहारा लेना पड़ रहा है जो कि स्वयं पर एक अनावश्यक दबाव बनाती है|
- जबकि इस प्रतियोगी दुनिया में जब सभी लोग भावनात्मक स्तर पर आपको सिर्फ इसलिए नीचा दिखाना चाहते हैं कि आप मानसिक रूप से कमजोर होकर किसी भी लक्ष्य की ओर आगे नहीं बढ़ सके तब आपकी मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखना काफी मुश्किल हो जाता है ऐसी परिस्थितियों में सोशल मीडिया,पीयर प्रेशर,व्यक्तिगत संबंध काम का तनाव हमें भुला देता है खुश है तो खुश महसूस करें|
कहानी का सार यह है कि जब बाहरी दबाव सामाजिक आर्थिक दोनों चरम सीमा पर पहुंच चुके हैं तो परिवार को एक सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए|